विरह व्यथा से व्यतीत द्रवित हो, वन वन भटके राम

आश्रम देखि जानकी हीना, भए बिकल जस प्राकृत दीना।। विरह व्यथा से व्यतीत द्रवित हो, वन वन भटके राम-२।अपनी सिया को, प्राण पिया को, पग पग ढूंढे राम।विरह व्यथा से व्यतीत द्रवित हो...... कुंजन माहि न सरिता तीरे, विरह विकल रघुवीर अधीरे।हे खग मृग हे मधुकर शैनी, तुम देखी सीता मृग नयनी।वृक्ष लता से, जा … Continue reading विरह व्यथा से व्यतीत द्रवित हो, वन वन भटके राम