पातंजल योग सूत्र, साधन पाद
अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः क्लेशाः ।।३ ।।
अर्थ: अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष एवं अभिनिवेश – ये क्लेश हैं।
व्याख्या:
यहाँ पर पाँच प्रकार के क्लेश बताये गये हैं –
(1) अविद्या से अर्थ अज्ञान से है। इसमें ज्ञान सही नहीं रहता।
(2) अस्मिता से अर्थ अपनेआप से ज्यादा लगाव का होना है। यह अहंकार की भावना लाता है।
(3) राग का अर्थ है वाह्य वस्तुओं से ज्यादा लगाव का होना। राग से मोह की भावना उत्पन्न होती है।
(4) द्वेष राग का विपरीत है। द्वेष में घृणा की भावना उत्पन्न होती है।
(5) अभिनिवेश का अर्थ है – अनुभवों को संचित रखना। पुराने अनुभवों से उत्पन्न संस्कारों के प्रभाव में आकर सही रुप न देखने पर, अविद्या क्लेश होता है ।
स्वरसवाही विदुषोऽपि तथारूढो भिनिवेशः ।।९।।
अर्थ: अभिनिवेश अपने रस में स्थिर होता है, और विद्वानो में भी आरुढ है ।
व्याख्या:
अभिनिवेश से अर्थ व्यक्तिगत लगाव से चिपटना है। ऐसा विद्वानो में भी होता है। ऐसा लगाव पुराने अनुभवों से उत्पन्न होता है। ये अनुभव संस्कार बनकर रहते हैं।
ते प्रतिप्रसवहेयाः सूक्ष्माः ।।१० ॥
अर्थ: सूक्ष्म रुप में उनकी उत्पत्ति समझने पर वो समाप्त हो जाती हैं।
व्याख्या:
अभिनिवेश भाव का प्रसव अर्थात उत्पत्ति संस्कारों से होती है । पहले सूक्ष्म रुप से यह देखा जाना चाहिये कि ये विचार कहाँ से उत्पन्न हो रहे हैं । फिर उनकी उत्पत्ति के भाव को जड से निकाल देने पर अभिनिवेश संस्कार समाप्त हो जाते हैं ।
– योगी आनंद, अद्वैत योग संस्थान