पुण्य का संचय सुखदायक है

पुण्य का संचय सुखदायक है

(लाजदेवधीता की कथा)

महाकश्यप स्थविर पिप्फली गुफा में रहते समय सातवें दिन ध्यान से उठकर भिक्षाटन के लिए गए. एक खेत की रखवाली करनेवाली कन्या स्थविर को लावा (लाजा) दान की. स्थविर जब लावा लेकर आगे बढे, तत्पश्चात उस कन्या को एक विषधर सर्प ने डस लिया, जिससे वह वहीँ मर गयी. कन्या प्रसन्नचित्त से मरकर, स्थविर को दान देने के पुण्य से तावतिंस भवन में देवकन्या होकर उत्पन्न हुई. वह वहां अपने उत्पन्न होने के कारण का विचार करती हुई महाकश्यप स्थविर को दान देने के कारण को जान, नित्य प्रातः पिप्फली गुफा के पास आकर झाड़ू लगाना, पानी लाकर रखना, आदि करना शुरू कर दिया, जिससे की उसकी पुण्य संपत्ति स्थिर हो जाए. जब स्थविर को इसका पता लगा तब उन्होंने देवकन्या को फिर कभी ऐसा न करने को कहा. देवकन्या स्थविर का उपस्थान करना चाहती हुई, बार बार आज्ञा मांगी, किन्तु स्थविर ने निषेध ही किया. तब वह आकाश में खड़ी होकर रोने लगी.

श्रावस्ती के जेतवन महाविहार में बैठे हुए भगवान बुद्ध ने देवकन्या के रोने के शब्द को सुनकर, उसके समक्ष प्रकाश फैला और सामने बैठे हुए उपदेश करने के सामान, कहा – “देवधीते, मेरे पुत्र कश्यप का रोकना कर्त्तव्य है, किन्तु पुण्य चाहने वालों का पुण्य कर्मो को करते ही रहना चाहिए. पुण्य करना इस लोक और परलोक, दोनों जगह सुखदायक है.” और निम्नलिखित गाथा को कहा –

 “पुण्यन्चे पुरिसो कयिरा कयिराथेनं पुनप्पुनं, तम्ही छन्दं कयिराथ सुखो पुण्यस्स उच्ययो”

अर्थात्, यदि मनुष्य पुण्य करे, तो उसे बार बार करे. उसमे रत होवे, क्योंकि पुण्य का संचय सुखदायक होता है.

3049218422806577013

– धम्मपद, पाप्वग्गो, 3

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s