भगवान बुद्ध ने देवकन्या के रोने के शब्द को सुनकर, उसके समक्ष प्रकाश फैला और सामने बैठे हुए उपदेश करने के सामान, कहा – “देवधीते, मेरे पुत्र कश्यप का रोकना कर्त्तव्य है, किन्तु पुण्य चाहने वालों का पुण्य कर्मो को करते ही रहना चाहिए. पुण्य करना इस लोक और परलोक, दोनों जगह सुखदायक है.” और निम्नलिखित गाथा को कहा - “पुण्यन्चे पुरिसो कयिरा कयिराथेनं पुनप्पुनं, तम्ही छन्दं कयिराथ सुखो पुण्यस्स उच्ययो” अर्थात्, यदि मनुष्य पुण्य करे, तो उसे बार बार करे. उसमे रत होवे, क्योंकि पुण्य का संचय सुखदायक होता है.